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SYL: 56 साल के बाद भी नहीं बन सकी सतलुज यमुना लिंक नहर ! जिम्मेदार कौन

सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के 6 वर्ष बाद भी नहीं हुआ समाधान

हरियाणा: बैठक के बाद बैठक ! कई सरकार आई, कई सरकार गई। हरियाणा व पंजाब सरकार के बीच कई दौर की बैठकें हो चुकी हैं और दोनों प्रदेशों के मुख्यमंत्री भी बैठकें कर चुके हैं, मगर अभी तक कोई हल नहीं निकल पाया है। सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के लगभग 6 वर्ष बाद भी यह विवाद जस का तस ही बना हुआ है।

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बैठक रही बेनतीजा: बुधवार को भी इसी विषय पर नई दिल्ली में केंद्रीय जल संसाधन मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत की अध्यक्षता में हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर व पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान की बैठक हुई, मगर इस बैठक का नतीजा भी वही ढाक के तीन पात वाला ही रहा यानी यह बैठक भी बेनतीजा सी साबित हुई ।

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56 से समस्या बरकरार: हरियाणा को अलग राज्य के रूप में अस्तित्व में आए लगभग 56 वर्ष बीत चुके हैं। मगर दोनों राज्यों के लिए नाक का सवाल बनी सतलुज यमुना लिंक नहर का न तो निर्माण हो सका और न ही बंटवारे का पानी नहीं मिला । अब जबसे पिछले वर्ष मार्च में पंजाब में हुए सत्ता परिवर्तन के साथ आम आदमी पार्टी की सरकार बनी है, तबसे एस. वाई. एल नहर का मामला फिर से गर्माया हुआ है ।

जानिए क्या है विवाद: बात दे कि एस.वाई.एल नहर को हरियाणा के लिए जीवन रेखा माना जाता है और इस संबंध में 2016 में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा हरियाणा के हक में फैसला सुनाते हुए यह भी सुझाव दिया था कि दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों को एक साथ बैठकर इस विवाद का सौहार्दपूर्ण समाधान करना चाहिए, मगर सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले के लगभग 6 वर्ष बाद भी यह विवाद जस का तस ही बना हुआ है ।

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पंजाब का दो टूक जबाव: दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों की बैठक से पहले भी दोनों राज्यों के बीच इस अहम विषय पर आधिकारिक व मुख्यमंत्री स्तर की कई बैठकें हो चुकी हैं और सभी बिना किसी नतीजे के ही खत्म हुई हैं ।हरियाणा जहां अपने हिस्से के पानी को लेकर लड़ाई लड़ता चला आ रहा है तो वहीं पंजाब हर बार यही बात दोहरा रहा है कि उसके पास हरियाणा को देने के लिए पानी है ही नहीं ।

ऐसे में कहा जा सकता है कि दोनों राज्यों में अलग अलग दलों की सरकारें बनती रहीं, मगर इतनी लंबी अवधि में नहर नहीं बन पाई और एक तरह से यह अहम मुद्दा राजनीतिक मुद्दा ही बनकर रह गया ।

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हरियाणा के हिस्से का पानी ले रहा है पंजाब व राजस्थान
पंजाब सरकार के इस अड़ियल रवैये के कारण हरियाणा अपने हिस्से का 1.88 एम.ए.एफ. पानी नहीं ले पा रहा है। पंजाब और राजस्थान हर वर्ष हरियाणा के हिस्से के लगभग 2600 क्यूसिक पानी का प्रयोग कर रहे हैं। यदि यह पानी हरियाणा में आता तो 10.08 लाख एकड़ भूमि सिंचित होती, प्रदेश की प्यास बुझती और लाखों किसानों को इसका लाभ मिलता।

 

 

पंजाब क्षेत्र में एस.वाई.एल के न बनने से हरियाणा में 10 लाख एकड़ क्षेत्र को सिंचित करने के लिए सृजित सिंचाई क्षमता बेकार पड़ी है। इसकी वजह से हरियाणा को हर वर्ष 42 लाख टन खाद्यान्नों की भी हानि उठानी पड़ती है। यदि 1981 के समझौते के अनुसार 1983 में एस.वाई.एल नहर बन जाती, तो हरियाणा 130 लाख टन अतिरिक्त खाद्यान्नों व दूसरे अनाजों का उत्पादन कर पाता। 15 हजार प्रति टन की दर से इस कृषि पैदावार का कुल मूल्य 19,500 करोड़ रुपए बनता है।

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